Bhagalpur में पावर प्रोजेक्ट पर विवाद और जमीन का मोल: Pirpainti Land Lease का असली सवाल

भागलपुर के Pirpainti क्षेत्र में प्रस्तावित 2400 MW thermal power plant को लेकर ग्रामीणों की आपत्तियाँ सतह पर आ गई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जमीन का मूल्यांकन और मुआवजा ठीक तरीके से नहीं हुआ, जबकि सरकार और कंपनी पक्ष इसे ऊर्जा सुरक्षा और रोज़गार से जोड़कर देख रहे हैं। इसी बहस के केंद्र में है Pirpainti Land Lease, जिसे लेकर नाममात्र की लीज़ फीस, अलग-अलग मुआवजे और पर्यावरणीय प्रभाव जैसे प्रश्न उठ रहे हैं।

Pirpainti Land Lease: क्या है आधिकारिक तस्वीर और स्थानीय आरोप

राज्य कैबिनेट ने Pirpainti में 30 से 33 वर्ष तक के लिए जमीन लीज़ पर देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। पावर सप्लाई के लिए BSPGCL और Adani Power के बीच प्रक्रियात्मक सहमति और LoI/LoA जारी होने की खबरें हैं। कुछ रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई कि 1,020.60 एकड़ जमीन कई मौज़ों में एक साथ लीज़ पर दी गई और Pirpainti Land Lease का सालाना शुल्क प्रतीकात्मक Re 1 per year बताया गया है।

कंपनी पक्ष का तर्क है कि प्रोजेक्ट पर लगभग 3 बिलियन डॉलर का निवेश होगा, जो बिहार की बिजली उपलब्धता और औद्योगिक विकास को गति देगा। राज्य एजेंसियाँ इसे टैरिफ-बेस्ड कम्पेटिटिव बिडिंग के तहत मिले अनुबंध का नतीजा बताती हैं और दावा करती हैं कि बिजली आपूर्ति NBPDCL और SBPDCL को दी जाएगी, जिससे प्रदेश की energy reliability बढ़ेगी।

ग्रामीण पक्ष का कहना है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया के दौरान दस्तावेजी पारदर्शिता और एकरूप मुआवजा नहीं मिला। कुछ किसानों ने अलग-अलग रेट दिए जाने, orchards और आम के बागों के नुकसान तथा वृक्ष कटान की आशंका पर चिंता जताई है। वे पूछ रहे हैं कि Pirpainti Land Lease से लाभ किसको होगा और क्या बिजली स्थानीय उपभोक्ताओं को उचित दर पर उपलब्ध कराई जाएगी।

स्थानीय लोगों की शिकायत है कि सुनवाई के अवसर, ऑन-ग्राउंड जाँच, और स्वतंत्र मूल्यांकन के बिना फ़ैसले लागू किए गए। प्रशासन का रुख यह है कि लैंड एक्विज़िशन विधि-सम्मत है और आपत्तियाँ दर्ज कराने तथा न्यायिक remedy की व्यवस्था मौजूद है। इस पूरे परिदृश्य में Pirpainti Land Lease शब्द केवल एक कानूनी व्यवस्था नहीं रह जाता, बल्कि सामाजिक स्वीकार्यता, वित्तीय न्याय, और पर्यावरणीय संतुलन का समेकित प्रश्न बन जाता है।

निवेश, बिजली और पर्यावरण: Pirpainti Land Lease से आगे की राह

यह प्रोजेक्ट तापीय ऊर्जा पर आधारित है और गंगा के जल स्रोत सहित ईंधन आपूर्ति और राख निस्तारण जैसी विषय-वस्तुएँ सामने आती हैं। सरकार का कहना है कि बड़े निवेश से रोज़गार, इन्फ्रास्ट्रक्चर, और स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित होगी। कंपनी का दावा है कि अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल तकनीक से उत्सर्जन नियंत्रण में रहेगा। दूसरी ओर, ग्रामीण और एक्टिविस्ट समुदाय भूमि उर्वरकता, कृषि आय, पेयजल, और जैव-विविधता पर असर को लेकर चिंतित हैं। वे मांग कर रहे हैं कि कम्पेंसटरी प्लान्टेशन, सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट, और बेलेंस्ड मुआवजा मॉडल स्पष्ट रूप से सार्वजनिक किए जाएँ।

नीति-विशेषज्ञ मानते हैं कि बड़े पावर प्रोजेक्ट्स तब ही व्यापक स्वीकार्यता पाते हैं जब पारदर्शी लीज़ शर्तें, एकसमान मुआवजा सूत्र, और ग्रिवांस रिड्रेसल के ठोस प्रावधान जमीन पर दिखें। Pirpainti Land Lease के मामले में सबसे बड़ी कसौटी यही होगी कि क्या कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें, बिजली की स्थानीय उपलब्धता, और ग्रामीण हित एक साथ आगे बढ़ते हैं। यदि रेवेन्यू शेयरिंग, लोकल सप्लाई कोटा, और पर्यावरण प्रबंधन जैसे तत्त्व स्पष्ट, मापनीय और समयबद्ध तरीके से लागू किए जाएँ, तो Pirpainti Land Lease विवाद का स्थान लेकर समावेशी विकास का मॉडल बन सकता है।

आखिर में, यह भी महत्वपूर्ण है कि सूचना तक पहुँच सभी पक्षों को हो। ग्रामीण समुदाय को कॉन्ट्रैक्ट की मुख्य शर्तों, मुआवजा गणना के आधार, और रीलोकेशन सहायता के बारे में स्पष्ट जानकारी दी जाए। मीडिया रिपोर्ट्स, सरकारी ब्रीफिंग और कंपनी स्टेटमेंट्स में जो अंतर दिखता है, वह भरोसे पर असर डालता है। यदि पब्लिक डिस्क्लोज़र और थर्ड-पार्टी मॉनिटरिंग मजबूत हो, तो Pirpainti Land Lease जैसी व्यवस्थाएँ केवल कागज पर नहीं, बल्कि लोगों के अनुभव में भी न्यायसंगत लगेंगी। इस समय सबसे ज़रूरी है कि Pirpainti Land Lease विवाद का नहीं, बल्कि समाधान का पर्याय बने।

स्रोत लिंक केवल अंत में

  • Bloomberg: बोली और आपूर्ति अनुबंध का संक्षिप्त विवरण। Bloomberg
  • National Herald India और स्थानीय कवरेज: Re 1 प्रति वर्ष लीज़ दावे और ग्राम स्तर की आपत्तियाँ। National Herald+1

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